दरोगा की दुलहिन को आया बुखार
कि जैसे पयोनिधि में आया हो ज्वार।
दरोगिन का कांपा कुंदन शरीर
कि जैसे कपोतिन हो कंपती अधीर।
दरोगा जी दौड़े दरोगिन के पास
दरोगिन को देखा तड़पते उदास।
बड़ी जोर से वे मचाते पुकार
जनाने से दौड़े कि जैसे बयार।
सिपाही को भेजा कि जा अस्पताल
लिवा लाओ डाक्टर को बीते न काल
दरोगिन की हालत थी बिल्कुल खराब
दया के भिखारी थे जालिम जनाब
चले आए डाक्टर, था पैसे का जोर
कि खींचा हो जैसे दरोगा ने डोर
दवा दी गई और उतरा बुखार
कि जैसे उतरता है सागर का ज्वार
कमाए थे पैसे कई सौ हजार
भरा था तिजोरी में धन बेशुमार
दरोगा ने दौलत से मारा बुखार
दरोगिन को तज के सिधारा बुखार।
जब अंबर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी
Friday, February 29, 2008
समय देवता
समय देवता
ऐसे समय तुम्हे मेरी पृथ्वी का परिचय प्राप्त हुआ है
जबकि युद्ध की चीलों के मुंह से हड्डी की गंध आ रही...
धुएं की चिड़िया धरती का धान खा रही।
समय देवता
किंतु तुम्हारे रेशम के इस चमक वस्त्र में
मिट्टी का विश्वास बांधकर
भेज रहा हूं
मेरी धरती पुष्पवती है
और मनुज की पेशानी के चारागाह पर दौड़ रही हैं
तूफानों की नई हवाएं।
ऐसे समय तुम्हे मेरी पृथ्वी का परिचय प्राप्त हुआ है
जबकि युद्ध की चीलों के मुंह से हड्डी की गंध आ रही...
धुएं की चिड़िया धरती का धान खा रही।
समय देवता
किंतु तुम्हारे रेशम के इस चमक वस्त्र में
मिट्टी का विश्वास बांधकर
भेज रहा हूं
मेरी धरती पुष्पवती है
और मनुज की पेशानी के चारागाह पर दौड़ रही हैं
तूफानों की नई हवाएं।
Sunday, February 17, 2008
नया चिट्ठा...पहली चिट्ठी
नया चिट्ठा...पहली चिट्ठी
साल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहांअपनी और अपने लोगों कीढेर सारी हकीकतों के साथढेर सारी शिकायतों के साथढेर सारे सवालों के साथढेर सारे लोगों के बारे मेंढेर सारी जानकारियों के साथढेर सारे लोगों के पाखंडों की मुठभेड़ मेंवाद-विवाद, बहस-मुबाहसे मेंसही-गलत, सच- झूठ के मुखौटे उठाते हुएसाल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहां!
साल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहांअपनी और अपने लोगों कीढेर सारी हकीकतों के साथढेर सारी शिकायतों के साथढेर सारे सवालों के साथढेर सारे लोगों के बारे मेंढेर सारी जानकारियों के साथढेर सारे लोगों के पाखंडों की मुठभेड़ मेंवाद-विवाद, बहस-मुबाहसे मेंसही-गलत, सच- झूठ के मुखौटे उठाते हुएसाल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहां!
Friday, February 15, 2008
बढ़ो-बढ़ो
बढ़ो-बढ़ो संघर्षमार्ग पर
नयी उषा के स्वागत को
संगीनों गोलों से अपने हम प्रशस्त करते पथ को।
ताकि हमारी दुनिया का बस श्रम ही स्वामी बन जाए,
एक बड़े परिवार सूत्र में
सारी दुनिया बंध जाए।
युद्ध क्षेत्र में बढ़ो-बढ़ो
अरे किसानों, ओ श्रमिकों!
नयी उषा के स्वागत को
संगीनों गोलों से अपने हम प्रशस्त करते पथ को।
ताकि हमारी दुनिया का बस श्रम ही स्वामी बन जाए,
एक बड़े परिवार सूत्र में
सारी दुनिया बंध जाए।
युद्ध क्षेत्र में बढ़ो-बढ़ो
अरे किसानों, ओ श्रमिकों!
Tuesday, February 12, 2008
हम भी हैं होश में
नया चिट्ठा...पहली चिट्ठी
साल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहांअपनी और अपने लोगों कीढेर सारी हकीकतों के साथढेर सारी शिकायतों के साथढेर सारे सवालों के साथढेर सारे लोगों के बारे मेंढेर सारी जानकारियों के साथढेर सारे लोगों के पाखंडों की मुठभेड़ मेंवाद-विवाद, बहस-मुबाहसे मेंसही-गलत, सच- झूठ के मुखौटे उठाते हुएसाल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहां!
साल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहांअपनी और अपने लोगों कीढेर सारी हकीकतों के साथढेर सारी शिकायतों के साथढेर सारे सवालों के साथढेर सारे लोगों के बारे मेंढेर सारी जानकारियों के साथढेर सारे लोगों के पाखंडों की मुठभेड़ मेंवाद-विवाद, बहस-मुबाहसे मेंसही-गलत, सच- झूठ के मुखौटे उठाते हुएसाल का कोई भी महीनासप्ताह का कोई भी दिनकिसी भी समयहम होंगे यहां!
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